ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

वशीकरण का विज्ञान

वशीकरण..एक ऐसा शब्द जिसमें बहुत अधिक रहस्य भरा हुआ है, वशीकरण क्या  है?
तथा इसका मानव जीवन पर कितना प्रभाव पड़ता है क्या इस शब्द के पीछे कोई अज्ञात रहस्य है ? 
क्या वशीकरण क्रिया के द्वारा कोई व्यक्ति किसी को अपने वश कर सकता है ?
यदि हाँ! तो कैसे ? इसका भी कोई विज्ञान है आज यही जानने का प्रयास करते है. वशीकरण क्रिया का ये रहस्यग समझने के लिए सबसे पहले उस शारीरिक रहस्य को समझना पड़ेगा जिसके द्वारा हम सोचने की शक्ति रखते है, हम कल्पना करने की क्षमता रखते है, अपने मन में शुभ या अशुभ विचार लाते है,..तो ऐसी कौन सी शक्ति या क्रिया है जिसके द्वारा ऐसा करने की हम लोगों के पास क्षमता है.ये सभी कर्म या क्रियाएं सनातन विज्ञान के अंतर्गत आता है जिसे सनातन धर्म भी कहते है इसी सनातन पद्धति को बिना समझे हम वशीकरण की क्रिया को ना समझ सकते है, ना ही क्रिया को सफल बना सकते है.


मनुष्य शरीर में एक सुपर पावर या कंट्रोलर या नियंत्रक हृदय के केंद्र में हमेशा स्थित रहता है. वही उस स्थान से अपनी अति सूक्ष्म तरंगों द्वारा पूरे शरीर और विशेष कर मस्तिष्क को निर्देशित कर के नियंत्रित करता है वो ही हमारी अनुभूति तथा समस्त क्रियाओं का मालिक है. शरीर और हमारा मस्तिष्क उसी का एक ऊर्जा क्षेत्र है उसी ऊर्जा क्षेत्र के हम कठपुतली समान क्रिया करते है.शरीर में स्थित नियंत्रक हमारे शरीर में  नाक के ऊपर एक ऊर्जा उत्पादन बिंदु है वंहा पर स्थित रहता है . यहाँ से सफेद रंग की तरंगों को बाहर निकालता है  है, जो हाथी के सूंढ़ की तरह जड़ में मोटी आगे पतली होती चली जाती है. इसका अगला नोक अत्यंत सूक्ष्म हो जाता है. यह तरंग वातावरण में दूर दूर तक गमन करती है. इसी ऊर्जा से विकसित जीवों में आँख और कान विकसित होते है.यह तरंग बाहरी दुनिया की तरंगों का पैटर्न अपने केंद्र को देता है. शरीर में स्थित नियंत्रक उसे मस्तिष्क टाक पहुँचाता है. मस्तिष्क में एक घना ऊर्जा चक्र है. वह उन पैटर्न को रिकॉर्ड करता है और उसे नीचें कंधें रीढ़ की जोड़ के पॉवर-पॉइंट को भेज देता है. वह वहाँ से केंद्र में अपना पैटर्न भेज देता है. शरीर में स्थित नियंत्रक  उसे ग्रहण करके आत्मानामक एक परमाणु को भेजता है, जो उसके केंद्र में होता है. वह उसे समझता है और अपनी इच्छा फिर तरंगों के माध्यम से अपने ऊपर भेजता है. क्रम से वह मस्तिष्क में पहुँचता है. वहाँ रिकॉर्ड होता है और वहां के पैटर्न के हिसाब से आज्ञा चक्र की तरंगों क्रियाशील हो जाती है. वह क्रिया के अनुसार शरीर के सारे पॉवर-पोइंटों पर की बोर्ड पर चल रही ऊंगलियों की तरह नाचती हैं. इसकी स्पीड भयानक होती है. 1 सेकंड में करीब 10000 से भी अधिक परिवर्त्तन होता है. इसलिए इन तरंगों को विघ्नेश्वर कहा जाता है. यह जब क्रिया नहीं करवा रहा होता है, मस्तिष्क के रेकॉर्डों में भटकता है. सुखद-दुखद , अच्छे-बुरे की रिकॉर्ड में इसकी अनुभूति पूर्व की क्रिया से जीव को होती रहती है.वशीकरण में इसी समय का लाभ उठाया जाता है. वह इन तरंगों के पैटर्न को ही बदल देता है और बुरे व्यक्ति की छवि अधिक आकर्षक हो जाती है. टूटा हुआ मन स्वयं को समझाने लगता है और व्यक्ति वशीभूत हो जाता है. उसके रिकॉर्ड में परिवर्त्तन हो जाता है. बुरा तो बुरा ही अंकित रहता है, पर वह धूमिल हो जाता है. आकर्षण का अनुपात बढ़ जाता है.

यंहा एक सवाल ये है कि जिसे नहीं पहचानते या जो मुझे नहीं पहचानता क्या उसका वशीकरण हो सकता है?

इसका उत्तर है कि शायद  हो सकता है. पर यह कठिन है; यदि उस व्यक्ति की कोई वस्तु, जिसमें पसीना, मूत्र आदि लगा हो या बाल नख आदि मिल जाए. परम्परा  से हमारे यहाँ औरते टूटे बालों को दोने में लपेट कर पानी में या गुप्त जगह मिट्टी में दबाती रही हैं.बालों से प्रबल तन्त्र क्रिया की जा सकती है. स्त्री का रज और पुरुष के धातु से दागदार कपड़ा या बाल, नखया इस्तेमाल किये मोज़े रूमाल आदि. पर कपडे एक हफ्ते से ज्यादा काम नहीं करते. फोटो पर तन्त्र क्रिया तभी हो सकती है, जब दोनों ने एक-दूसरे को देखा हो, जानते पहचनाते हो. अपरिचित यदि टीस भी उत्पन्न करें, तो क्या? लोग उसे भटका देते है.पर यह क्रिया जादू-टोने की तरह तुरंत नहीं हो जाती. इसमें लगातार कई रातों तक तन्त्र क्रिया और हवन चलता रहता है. 21 दिन से 45 दिन लग जाते है

आजकल कोई किसी के लिए 108 मन्त्र से ज्यादा समय नहीं निकाल सकता, यहाँ 108 हवन भी करना होता है.यह याद रखिये. ये सूक्ष्म तरंगों का खेल है. हवन में बाल के साथ जलने वाली सामग्री में करवाने वाले के भी बाल होते है. वहाँ उसमें जरूरी भाव लाने के लिए कई पदार्थ मिलाये जाते है. ये सबके लिए एक जैसे नहीं होते.इस क्रिया में मन्त्र ग्रंथन विन्यास से चलता है. समय रात्रि 9 के बाद 2 बजे तक या प्रातःकाल होता है.वस्त्र लाल, आसन लाल, मन्त्र लेखन की स्याही अनार के रस की होती है.फूल केवड़ा, कामिनी, गुलाब या चमेली का होता है.वैसे भिन्न भिन्न ईष्टों के साधक इसमें परिवर्त्तन भी करते है; पर परिवर्त्तन नक्षत्र के अनुकूल हुआ तो ठीक वरना काम सफल नहीं होता.

उसी नियंत्रक की क्रिया को हम सब तंत्र शास्त्र के द्वारा जानते है हमारे ऋषि मुनियों ने उसका नाम यन्त्र
मंत्र तंत्र रखा है इन्ही यन्त्र मंत्र तंत्र के द्वारा हम अपनी तरंगो को बाहरी क्रिया से नियंत्रिक कर के अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर सकते है 

ज्योतिष आदि के द्वारा हम जो भी उपाय करते है  वो सब इन्ही यंत्र मंत्र और तंत्र क्रियाओं के द्वारा ही होते है.  वो सब इन्ही यंत्र मंत्र और तंत्र क्रियाओं के द्वारा ही होते है. वशीकरण क्रिया तंत्र शास्त्र के अंतर्गत आती है तंत्र में छः कर्म आते है अर्थात षट कर्म..षट कर्म में  (१) शान्ति (२) वशीकरण (३) स्तम्भन (४) विद्वेषण (५) उच्चाटन (६) मारण ये छः कर्म अभिचार कहलाते है तथा दश महाविद्या से भी इनका सम्बन्ध है षटकर्म की क्रिया किसी भी कार्य को सिद्ध या अनुकूल करने के लिए की जा सकती है सभी शास्त्रों ने स्पष्ट कहा है की शान्ति कर्म को छोड़ कर सभी क्रियाएं वर्जित है तथा इन्हें करने से पूर्व अपनी सुरक्षा का ध्यान रखा जाए. षटकर्म में दुसरे नम्बर की क्रिया को वशीकरण कहते है वशीकरण व्यक्ति का वस्तु का होता है किसी को वश में कर नियंत्रण करना बहुत ही मुश्किल कार्य होता है यदि भाव विचार उसके प्रति अच्छे है तो जल्दी सफलता मिलती है अनुचित कार्य के लिए किसी का वशीकरण करना खतरनाक और असंभव कार्य होता है. स्वाभाविक रूप से प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा होती है कि सभी लोग उसकी बात सुने उसका कार्य करें जो वो चाहता है लेकिन ऐसा हो नही पाता है. संसार में सबसे अधिक कुटनीतिक आचार्य चाणक्य जी ने भी एक श्लोक के द्वारा कहा है कि..

"लुब्धमर्थेन गृह्णीयात् स्तब्धमंजलिकर्मणा। मूर्खं छन्दानुवृत्त्या च यथार्थत्वेन पण्डितम्॥"अर्थात जो मनुष्य धन का लोभी हो उसको धन देकर, अभिमानी या अंहकारी को हाथ जोड़ कर, मुर्ख मनुष्य को उसकी बात मन कर और विद्वान को सत्य बात कह कर वश में किया जा सकता है प्रायः मनुष्य सौन्दर्यता को देख कर वशीभूत हो जाते है इसमें कोई क्रिया नही करनी पडती है. 

इसके अतिरिक्त "बिन विषहूं के सांप कोचाहिए फने बढ़ाय। होउ नहीं या होउ विषघटाघोप भयदाय॥" अर्थात यदि सर्प में विष नही है तो भी सर्प को अपने फन फैला कर फुंफकार करना चाहिए और यदि कोई सुंदर नही है तो उसे सुंदरता दिखाने के लिए उपचार करना चाहिए बाह्य सुंदरता का उपाय करना अति आवश्यक है.
वैसे तो वशीकरण एल असामान्य विद्या है लेकिन ये एक अपने आप में पूर्ण विज्ञान से बढ़कर है अभी तक का विज्ञान इस वशीकरण के रहस्य तक नही पहुँच सका है ये एक रहस्य बना हुआ है. जबकि हमारे सनातन ऋषि मुनि द्वारा इस रहस्य से पर्दा उठ चुका है वह सब इस दस विद्याओं में निपुण थे.
मनुष्य का स्वभाव है की वो चाहता है कि सब उसके अधीन रहें कर्मचारी चाहता अहै की उसके अधिकारी उसको सम्मान दे पत्नी की इच्छा होती है कि उसका पति उसकी प्रत्येक बात माने, पति की भी यही इच्छा होती है पत्नी उसके वश में रहे, इस वशीकरण द्वारा नियंत्रण से बाहर पत्नी, पति, संतान अदि को नियन्त्रण किया जा सकता है, गलत भाव से इसे नही करना चाहिए.

वशीकरण शक्ति प्राप्त करने के बसद आपके मुखमंडल में एक तेज़ आ जाएगा, एक ख़ुशी, एक मुस्कान हमेशा आपके चेहरे पर रहेगी. आत्मविश्वास जागृत हो जाएगा, लोग आपकी बात को महत्व देने लग जायेंगे, सभी आपका कहना मानेंगे.

आगे के लेख में इस वशीकरण  विद्या का वैज्ञानिक तत्व आपके सामने रखूंगा, जिस से अप प्रयोग कर इस वशीकरण विद्या का लाभ उठा सकेंगे.

इस संसार में चमत्कार नही होते,जो भी घटित होता है वो सनातन नियमों के अधीन ही होता है, उसका ज्ञान अनिवार्य है, इसी नियमों के अंतर्गत परमात्मा सबको देता है नियमों के विरुद्ध परमात्मा भी किसी को कुछ नहीं देता.

वास्तव में आधुनिक विज्ञान या विश्व इस तत्व ज्ञान को नही जानता और इसी कारण से उसको ये सब चमत्कार लगता है.

वशीकरण के विषय में अगले लेखों में प्रयोगात्मक क्रियाओं का विस्तार देंगे....


शुभमस्तु !!


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